शुक्रवार, जुलाई 09, 2010

खूब पैसा जोड़ लिया...


तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया,
आंखों पर पड़ा दौलत का पर्दा, सबसे मुंह मोड़ लिया।

एक कटाक्ष- ‘गरीब की औलाद’, गहरा चुभा दिल में,
ये दर्द मिटाने को- धन कमाने को वो भूल गया सुबह-शाम,
मजदूर का बेटा बना बड़ा आदमी, अनवरत करके काम,
पैसा बन गया खुदा उसका, आदमी से नाता तोड़ लिया
तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया...

नहीं भूल पाया वो- भूखे पेट सोना, फटे कपड़ों में स्कूल जाना,
याद है उसे, चवन्नी भी नहीं होती थी बाप के पास,
कहीं बेटा-बेटी को न हो जाए ऐसी कमी का अहसास,
इसीलिए उसने पैसा जोड़ा, बच्चों का भाग्य मोड़ लिया,
तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया...

गरीबी का कलंक मिटाने की गहरी कसक थी दिल में,
चांदी जोड़ी, सोना जोड़ा, नहीं जोड़ पाया रिश्ते-नाते,
बड़े साब की पहचान बनाई, करोड़ों के हुए बैंक खाते,
'गरीबों' से कैसे रखता रिश्ता, सो माँ-बाप को भी छोड़ दिया,
तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया...

अपनों का जीवन सुधारने को, बलिदान कर दिया यौवन,
बंगला ख़रीदा, गाड़ी खरीदी, जवानी भर आँख मूँद कमाया,
अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ा, अपने बच्चों को काबिल बनाया,
बच्चे हो गए और बड़े, बुढ़ापे में अकेला छोड़ दिया,
तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया...

तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया,
आंखों पर पड़ा दौलत का पर्दा, सबसे मुंह मोड़ लिया।

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