रविवार, जुलाई 11, 2010

तलाश एक हिन्दुस्तानी की

एक अमेरिकी हिंदुस्तान घूमने आया।
एक महीने तक उसने कन्याकुमारी से कश्मीर तक देश का हर कोना देखा। देश देखा, वेश देखा उसने यहाँ का परिवेश भी देखा। तबियत खुश हो गई। जैसा दोस्त ने बताया था, उससे भी कहीं बढ़कर पाया।
वापस अपने देश लौटा तो हिंदुस्तान घूमने की सलाह देने वाले दोस्त ने पूछा- कैसा लगा हमारा भारत?

अमेरिकी बोला- बहुत शानदार। पुराने इतिहास, परम्पराओं और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर वो ज़मीन वास्तव में महान है।
भारतीय को ये सुनकर बड़ा गर्व हुआ।


उसने आगे पूछा- और हमारे भारतीय भाई-बंधू कैसे लगे?


अमेरिकी बोला- कौन भारतीय? मुझे तो वहां कोई भी भारतीय नहीं मिला। एक महीने के दौरान एक भी नहीं।

भारतीय को गुस्सा आ गया । वो बोला- क्या बकवास कर रहे हो? यदि वहां तुम्हे कोई भारतीय नहीं मिला तो कौन मिला?

अमेरिकी शांत भाव से बोला-
कश्मीर में कश्मीरी।
पंजाब में पंजाबी।
बिहार में बिहारी।
महाराष्ट्र में मराठी।
राजस्थान में राजस्थानी।
मद्रास में मद्रासी
बंगाल में बंगाली और
तमिलनाडु में तमिल...

उसने कहना जारी रखा-
मैं हिन्दू से मिला,
मुस्लिम से मिला,
जैनियों से मिला,
ईसाईयों से भी मिला...
लेकिन मेरे 'भारतीय' मित्र मुझे वहां एक भी "हिन्दुस्तानी" नहीं मिला...

अब भारतीय का चेहरा देखने लायक था।
क्या यही है भारत की पहचान?

(एक शुभचिंतक द्वारा उठाया गया सवाल... उसने भी नाम की जगह "हिन्दुस्तानी " ही लिखा है।)

शुक्रवार, जुलाई 09, 2010

खूब पैसा जोड़ लिया...


तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया,
आंखों पर पड़ा दौलत का पर्दा, सबसे मुंह मोड़ लिया।

एक कटाक्ष- ‘गरीब की औलाद’, गहरा चुभा दिल में,
ये दर्द मिटाने को- धन कमाने को वो भूल गया सुबह-शाम,
मजदूर का बेटा बना बड़ा आदमी, अनवरत करके काम,
पैसा बन गया खुदा उसका, आदमी से नाता तोड़ लिया
तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया...

नहीं भूल पाया वो- भूखे पेट सोना, फटे कपड़ों में स्कूल जाना,
याद है उसे, चवन्नी भी नहीं होती थी बाप के पास,
कहीं बेटा-बेटी को न हो जाए ऐसी कमी का अहसास,
इसीलिए उसने पैसा जोड़ा, बच्चों का भाग्य मोड़ लिया,
तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया...

गरीबी का कलंक मिटाने की गहरी कसक थी दिल में,
चांदी जोड़ी, सोना जोड़ा, नहीं जोड़ पाया रिश्ते-नाते,
बड़े साब की पहचान बनाई, करोड़ों के हुए बैंक खाते,
'गरीबों' से कैसे रखता रिश्ता, सो माँ-बाप को भी छोड़ दिया,
तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया...

अपनों का जीवन सुधारने को, बलिदान कर दिया यौवन,
बंगला ख़रीदा, गाड़ी खरीदी, जवानी भर आँख मूँद कमाया,
अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ा, अपने बच्चों को काबिल बनाया,
बच्चे हो गए और बड़े, बुढ़ापे में अकेला छोड़ दिया,
तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया...

तिनका-तिनका करके उसने खूब पैसा जोड़ लिया,
आंखों पर पड़ा दौलत का पर्दा, सबसे मुंह मोड़ लिया।

सोमवार, जुलाई 05, 2010

रक्तदानी का अंत

सड़क पर भीड़ जमा थी। भीड़ के बीच में खून से लथपथ 20-22 साल का एक नौजवान कराह रहा था। पास ही बिखरे थे कुछ प्रमाण पत्र जिनमें से एक बता रहा था कि वह यूनिवर्सिटी का सिल्वर मेडलिस्ट था। दूसरे पर उसका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा था, जिस पर उसकी सराहना की गई थी कई बार अपना खून देकर कई लोगों की जान बचाने के लिए।
कमीज की जो से आधा बाहर लटक रहा एक लिफाफा भी खून से भीगकर अपना रंग खो चुका था। शायद वह किसी नौकरी के लिए कॉल लैटर था।
रोड के दूसरी ओर मंत्रीजी की रैली थी जिसमें वे युवाओं और देश के लिए कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखने का दम भर रहे थे।
लोगों के चेहरों पर दर्द तो दिख रहा था, लेकिन इतनी हिम्मत नहीं कि वे उसे अस्पताल पहुंचा दें। तभी एक गाड़ी वाले का दिल पसीजा और एक आदमी की मदद से गाड़ी में डालकर वह उसे अस्पताल ले गया।
जांच के बाद डॉक्टरों ने कहा- खून बहुत बह गया है, जान बचानी है तो खून चढ़ाना पड़ेगा।
डॉक्टरों ने ऐबी नेगेटिव ब्लड की 3 यूनिट लाने को कह दिया।
अब भी गाड़ी वाले ने ही भलमनसाहत दिखाई। खुद का लड नेगेटिव नहीं था सो ब्लड बैंक की ओर दौड़ा। चार ब्लड बैंक की खाक छानने के बाद भी निराशा हाथ लगी। पता लगा- हर ब्लड बैंक में नेगेटिव ग्रुप उपलध है, लेकिन शहर में मंत्रीजी आए हैं और उनका ब्लड ग्रुप भी नेगेटिव है, इसलिए हर जगह ये खून इमरजेंसी के लिए रखा गया है।


वो भला मानस कुछ नहीं कर पाया और उसकी आंखों के सामने युवक ने तड़प-तड़प कर जान दे दी।
दोपहर ढली तो सड़क किनारे स्थित श्मशान में एक चिता जल रही थी और पास से ही मंत्रीजी का काफिला धूम-धड़ाके से उसके रक्तदाता-प्रमाणपत्र को रौंदता हुआ गुजर रहा था।

शुक्रवार, जुलाई 02, 2010

दूसरा रास्ता


नर्सिंग होम पहुंचने की जल्दी और पसीने से तर चेहरे पर चिंता की लकीरें उसकी बेचैनी बयाँ कर रही थी।
वह डॉक्टर के पास पहुंची और बोली- "डॉक्टर, मैं बहुत परेशानी में हूं। अभी मेरा बेटा एक साल का भी नहीं हुआ है और मैं दोबारा पेट से हूं। आप समझते ही हैं कि इतने कम अंतर पर दो बच्चे ठीक नहीं होंगे।"
वह बोलती गई - "ऐसे में मेरे पास एक ही रास्ता है कि मैं अपना गर्भ गिरा दूं। और इस काम में आप ही मेरी मदद कर सकते हैं।"
चुपचाप उसकी बात सुन रहा डॉक्टर कुछ देर खामोश रहा। थोड़े सन्नाटे और सोच-विचार के बाद डॉक्टर ने कहा- "देखा, गर्भ गिरोगी तो बच्चे से तो छुटकारा मिल जायेगा लेकिन इसमें jओखिम ज्यादा है। मेरे पास एक और रास्ता है जिसमें तुम्हारा काम भी हो जाएगा और किसी तरह का खतरा भी नहीं है।"
महिला को कुछ राहत मिली कि चलो डॉक्टर उसके काम के लिए तैयार तो हो गया।
उसने डॉक्टर की ओर देखा तो डॉक्टर ने फिर कहना शुरू किया- "ये सही है कि तुम एक साथ इतने छोटे दो बच्चों का ख्याल नहीं रख सकोगी। ऐसे में एक से तो छुटकारा पाना ही है, तो क्यों न हम इस बच्चे से छुटकारा पा लें जो तुम्हारी गोद में है।
वह बोली- "मैं समझी नहीं।"
डॉक्टर ने समझाया- "मारना ही है तो क्यों ना इस गोद वाले बच्चे को ही मार डालें."
वह बोलता गया- "इससे दूसरा बच्चा पैदा होने से पहले तुम्हे पूरा आराम भी मिल जाएगा और तुम्हारा काम भी बन जाएगा। इससे कुछ फर्क पड़ता नहीं कि हम किसा बच्चे से छुटकारा पा रहे हैं। यदि तुम अपनी गोद में लिए बच्चे को खत्म कर दो तो तुम्हारी सेहत पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा।"
डॉक्टर की बात सुनकर वह सिहर उठी।
डरी-सहमी सी वह बोली- "डॉक्टर ये कैसे हो सकता है? बच्चे को मारना तो जुर्म है।"
"सही कहा", डॉक्टर बोला। "मुझे तो पता है की बच्चे की हत्या जुर्म भी है और पाप भी, लेकिन लगता है आपको इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसीलिए मुझे लगा कि दूसरा रास्ता ही ठीक रहेगा।"
अब डॉक्टर के चेहरे पर मुस्कान थी। वह अपने मकसद में सफल हो चुका था और एक जननी को समझा दिया था की बच्चे की हत्या समान है चाहे वह जन्म ले चुका हो, या दुनिया में आने वाला हो।

चौधर की झूठी कहानी...


ऐ ऊंची पगड़ी वालो, ये चौधर की झूठी कहानी है,
मोहब्बत रास्ता बना ही लेगी, ये तो बहता पानी है,

मत बहाओ तुम खून उनका, जिनको अपना कहते हो,
पहले धरते हो कंस-रूप, फिर जिंदगीभर गम सहते हो,
पहले मिलते थे छिप-छिपकर, अब मिलकर छिपते हैं,
टकरा जाएँगे किसी दिन वो तुमसे, ये जोश-ऐ-जवानी है
ऐ ऊंची पगड़ी वालो, ये चौधर की झूठी कहानी है...

अब छोड़ भी दो चौधर-गोत्र, ये घमंड पुराना है,
इज्ज़त की खातिर ना अकबर की तरह अकडो तुम,
अनारकली को चिनवाया तो तब चुप रह गया था,
आज कुछ भी कर गुजरेगा ये सलीम बलिदानी है,
ऐ ऊंची पगड़ी वालो, ये चौधर की झूठी कहानी है...

नाम की खातिर अपनों को दफनाना, बड़ी नादानी है,
बदलो खुद को, तकाजा है दौर का, बदलाव की रवानी है,
चुपचाप सह जाती थी तुम्हारे सारे ज़ुल्म जो अबला नारी,
कल तक थी केवल लक्ष्मी, आज बनी भवानी है,
ऐ ऊंची पगड़ी वालो, ये चौधर की झूठी कहानी है...

गुरुवार, जुलाई 01, 2010

आज फिर आसमां से बरसा है पानी...



आज फिर आसमां से बरसा है पानी,
सौंधी - सी मिट्टी महक रही है,
अरसे बाद डाला है किसी ने चुग्गा,
आज फिर चिड़िया चहक़ रही है,
आज फिर आसमां से बरसा है पानी....

छाई हैं घटायें, नम हैं हवाएं,
आज फिर नवयौवना बहक रही है,
अजीब सी तपन दे गया ये सावन
गीली है माटी, फिर भी दहक रही है....
आज फिर आसमां से बरसा है पानी....