शुक्रवार, जनवरी 06, 2012

जो भी कौम वतन की खातिर मरने को तैयार नहीं उसकी संतति को आजादी जीने का अधिकार नहीं

विमान-अपहरण
मैं ताजों के लिये समर्पण, वंदन गीत नहीं गाता
दरबारों के लिये कभी अभिनन्दन-गीत नहीं गाता
गौण भले हो जाऊँ लेकिन मौन नहीं हो सकता मैं
पुत्र- मोह में शस्त्र त्याग कर द्रोण नहीं हो सकता मैं
कितने भी पहरे बैठा दो मेरी क्रुद्ध निगाहों पर
मैं दिल्ली से बात करूँगा भीड़ भरे चौरोहों पर

दिल्ली को कोई आतंकी जादू- टोना लगता है
गीता-रामायण का भारत बौना -बौना लगता है
विस्फोटों की अपहरणों की स्वर्णमयी आजादी है
रोज गौडसे की गोली के आगे कोई गाँधी है
मैनें भू पर रश्मिरथी का घोड़ा रुकते देखा है
पाँच तमंचों के आगे दिल्ली को झुकते देखा है

हम पूरी दुनिया में बेचारे- से हैं
अपमानों की ठोकर के मारे- से हैं
मजबूरी संसद की सीरत लगती है
अमरीका की चौखट तीरथ लगती है
मैं दिनकर का वंशज दिल्ली को दर्पण दिखलाता हूँ
इसीलिए मैं केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ

जब भारत का यान खड़ा था कंधारों की धरती पर
असमंजसता बनी हुई थी भारतीयों की मुक्ति पर
भीम छुपाकर मुँह बैठे थे बेशर्मी के दामन में
अर्जुन का गांडीव पड़ा था कायरता के आँगन में
रावन अट्टहास करता था पंचवटी की राहों में
राम घिरे लाचार खड़े थे गठबंधन की बाँहों में

हम हमदर्दी खोज रहे थे काबुल वाले गैरों में
हमने टोपी जाकर रख दी अफगानों के पैरों में
जो अफगानी आतंकों की शैली गढ़ते देखे हैं
जिनके बाजू केसर की क्यारी तक बढ़ते देखे हैं
जो दामन में ओसामा लादेन छिपाकर बैठे हैं
अपनी आँखों में पिंडी के नैन छुपाकर बैठे हैं

उनकी साजिश-मक्कारी से मेरा भारत छला गया
और वार्ता करने उनके दरवाजे पर चला गया
भारत खून-सने हाथों से हाथ मिलाने पहुँच गया
सिंहराज कुत्तों के आगे पूंछ हिलाने पहुँच गया
अफगानी चेहरे से उजले मन के भीतर काले थे
तालिबान के सारे पासे मामा शकुनी वाले थे

उनसे कोई आशा करना दिल्ली की नादानी थी
इस चौसर में हर युधिष्ठिर की निश्चित हो जानी थी
दिल्ली के दरबार फ़ैसले ग़लत वरण कर बैठे हैं
पांडव खुद ही पांचाली का चीर-हरण कर बैठें हैं

स्वाभिमान को रहन किये बैठे हैं हम
खुद्दारी को दहन किये बैठे हैं हम
हमने सीने में अपमान सहेज लिया
हत्यारों के साथ मंत्री भेज दिया

मैं इस नादानी पर मुट्ठी कस -कस कर रह जाता हूँ
इसीलिए मैं केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ

जिनके दिल में दया नहीं उमड़ी रमजान महीने में
उनको फर्क नहीं मासूमों के मरने में जीने में
जब हत्यारों ने इंसानी रिश्ते-नाते त्यागे थे
और फिरौती में दिल्ली से छत्तिस कैदी मांगे थे
तब दिल्लीवालों ने केवल निर्णय एक लिया होता
छत्तिस के छत्तिस को तोप के मुँह से बांध दिया होता

काश हमारी दिल्ली की आँखों में काल दिखा होता
सिंहासन की आँखों का भी डोरा लाल दिखा होता
और चुनौती दे दी होती सीधे रावलपिंडी को
भीष्म पितामह क्षमा नहीं कर सकते और शिखंडी को
नयन तीसरा डमरू वाले शिव ने खोल दिया होता
ऊँचे स्वर में लालकिले से हमने बोल दिया होता
तनिक खरोंचें भी आई जो भारत के बाशिंदों को
जिन्दा एक नहीं छोड़ेंगे बंदी पड़े दरिंदों को
बंधक भी बचते भारत का गौरव भी जिन्दा रहता
और हमारा सर दुनिया में यूँ ना शर्मिंदा रहता
आतंकों के आँधी -तूफां - बादल सब रुकते दिखते
चंदा-तारे भारत माँ के चरणों में झुकते दिखते

काश उन्हें हम हिन्दुस्तानी पानी याद दिला देते
उनको क्या उनके पुरखों को नानी याद दिला देते
लेकिन हम तो हर कीमत पर समझौते के आदी हैं
मुँह पर चाँटा खाते रहने वाले गाँधीवादी हैं

ये कायरता का ना खेल हुआ होता
गद्दी पर सरदार पटेल हुआ होता
उग्रवाद की उम्र साँझ कर दी जाती
हर आतंकी कोख बाँझ कर दी जाती

मैं दरबारों की लाचारी को चाणक्य पढ़ाता हूँ
इसीलिए मैं केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ

मुक्त रुबिया का हो जाना निर्णय ग़लत हुआ हमसे
और तभी पूरी घाटी धुंधलाई आतंकी तम से
हमने अपनी खुद्दारी के सही जलजले नहीं किये
और हमारे दरबारों ने लौह-फ़ैसले नहीं किये
अर्जुन मछली की आँखों पर तीर चलाना चूक गये
मुट्ठी भर जुगनू सूरज के ज्योति-कलश पर थूक गये

राजनीति ने अपनी ही सेना के बाजू तोड़ दिए
बारी-बारी समझौतों में ख़ूनी कातिल छोड़ दिये
जब सिंहासन का राजा ही कायर दिखने लगता है
तो पूरा मौसम हत्यारा डायर दिखने लगता है
आखिर यूँ झुकते-झुकते दुनिया से क्या ले लेंगे हम
कोई दिल्ली मांगेगा तो क्या दिल्ली दे देंगे हम

बंधकजन के परिजन भी सब खुदगर्जी में झूल गये
अपने रिश्ते याद रहे भारत माता को भूल गये
उनके हर परिजन ने कायर होने का आभास दिया
नहीं किसी ने त्याग-धर्म का दिल्ली को विश्वाश दिया
काश कि उनके परिवारों ने हिम्मत ना तोड़ी होती
हमने जग में देश-प्रेम की अमर कथा जोड़ी होती
आखिर उन परिवारों की भी कोई जिम्मेदारी थी
सच पूछो तो दिल्ली उनके परिवारों से हारी थी

क्या ये देश उन्हीं का है जो सीमा पर मर जाते हैं
अपना खून बहाकर टीका सरहद पर कर जाते हैं
ऐसा युद्ध वतन की खातिर सबको लड़ना पड़ता है
संकट की घड़ियों में सबको सैनिक बनना पड़ता है
जो भी कौम वतन की खातिर मरने को तैयार नहीं
उसकी संतति को आजादी जीने का अधिकार नहीं

अब जग के दादाओं से डरना छोडो
और कराची से अपना नाता तोड़ो
अब एक और महाभारत लड़ना होगा
चक्र सुदर्शन लेकर के अड़ना होगा

मैं अर्जुन को श्रीकृष्ण की गीता याद दिलाता हूँ
इसीलिए मै केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ

किसके कितने लाल सलोने सीमा पर छिन जाते हैं
गुरु गोविन्द जी बेटे दीवारों में चिन जाते हैं
झाँसी की रानी लड़कर रजधानी मिटवा देती है
पन्ना धाय वफ़ादारी में बेटा कटवा देती है
मंगल पांडे आजादी का परवाना हो जाता है
उधम डायर से बदले को दीवाना हो जाता है

घास-फूँस की रोटी खाकर राणा नहीं लड़े थे क्या
बन्दा बैरागी के सर पर हाथी नहीं चढ़े थे क्या
वीर हकीकत राय धर्म की खातिर मरते देखे हैं
ऋषि दधिची भी अपनी हड्डी अर्पण करते देखे हैं
हाड़ी रानी शीश काट कर थाली में रख देती है
ये गाथा उनको सूरज की लाली में रख देती है

जेल भरे क्यूँ बैठे हैं हम आदमखोर दरिंदों से
आजादी का दिल घायल है जिनके गोरखधंधों से
घाटी में आतंकवाद के कारक सिद्ध हुए हैं जो
बच्चों की मुस्कानों के संहारक सिद्ध हुए हैं जो
उन जहरीले नागो को भी दूध पिलाती है दिल्ली
मेहमानों जैसी बिरयानी-मटन खिलाती है दिल्ली

आज समय को उत्तर देना ही होगा सिंहासन को
चीरहरण की कौन इजाजत देता है दुशाशन को
न्याय-व्यवस्था निर्णय करने में मजबूर रही तो क्यों ?
इनकी गर्दन फाँसी के फंदों से दूर रही तो क्यों ?
जिनकी जहरीली साँसों में आतंकों की आँधी है
उनको जिन्दा रखने में दिल्ली असली अपराधी है

कानूनों की हथकड़ियों को कड़ा करो
इनको फाँसी के फंदों पर खड़ा करो
पागल कुत्ते की हत्या मजबूरी है
गद्दारों को फाँसी बहुत जरुरी है

मैं बजरंगबली को उनकी ताकत याद दिलाता हूँ
इसीलिए मै केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ
डॉ. हरिओम पंवार

गुरुवार, जनवरी 05, 2012

अयोध्या की आग पर

अयोध्या की आग पर
 चर्चा है अख़बारों में
टी. वी. में बाजारों में
डोली, दुल्हन, कहारों में
सूरज, चंदा, तारों में
आँगन, द्वार, दिवारों में
घाटी और पठारों में
लहरों और किनारों में
भाषण-कविता-नारों में
गाँव-गली-गलियारों में
दिल्ली के दरबारों में

धीरे-धीरे भोली जनता है बलिहारी मजहब की
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की

मैं होता हूँ बेटा एक किसानी का
झोंपड़ियों में पाला दादी-नानी का
मेरी ताकत केवल मेरी जुबान है
मेरी कविता घायल हिंदुस्तान है

मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं
ईद-दिवाली भी डर-डर कर आते हैं
पर मेरे कर में है प्याला हाला का
मैं वंशज हूँ दिनकर और निराला का

मैं बोलूँगा चाकू और त्रिशूलों पर
बोलूँगा मंदिर-मस्जिद की भूलों पर
मंदिर-मस्जिद में झगडा हो अच्छा है
जितना है उससे तगड़ा हो अच्छा है

ताकि भोली जनता इनको जान ले

धर्म के ठेकेदारों को पहचान ले
कहना है दिनमानों का
बड़े-बड़े इंसानों का
मजहब के फरमानों का
धर्मों के अरमानों का
स्वयं सवारों को खाती है ग़लत सवारी मजहब की |
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||

बाबर हमलावर था मन में गढ़ लेना
इतिहासों में लिखा है पढ़ लेना
जो तुलना करते हैं बाबर-राम की
उनकी बुद्धि है निश्चित किसी गुलाम की

राम हमारे गौरव के प्रतिमान हैं
राम हमारे भारत की पहचान हैं
राम हमारे घट-घट के भगवान् हैं
राम हमारी पूजा हैं अरमान हैं
राम हमारे अंतरमन के प्राण हैं
मंदिर-मस्जिद पूजा के सामान हैं

राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना
राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना
राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालो
राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का
रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का

दर्पण के आगे आओ
अपने मन को समझाओ
खुद को खुदा नहीं आँको
अपने दामन में झाँको
याद करो इतिहासों को
सैंतालिस की लाशों को

जब भारत को बाँट गई थी वो लाचारी मजहब की |
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||

आग कहाँ लगती है ये किसको गम है
आँखों में कुर्सी हाथों में परचम है
मर्यादा आ गयी चिता के कंडों पर
कूंचे-कूंचे राम टंगे हैं झंडों पर
संत हुए नीलाम चुनावी हट्टी में
पीर-फ़कीर जले मजहब की भट्टी में

कोई भेद नहीं साधू-पाखण्डी में
नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में
अब निर्वाचन निर्भर है हथकंडों पर
है फतवों का भर इमामों-पंडों पर
जो सबको भा जाये अबीर नहीं मिलता
ऐसा कोई संत कबीर नहीं मिलता

जिनके माथे पर मजहब का लेखा है
हमने उनको शहर जलाते देखा है
जब पूजा के घर में दंगा होता है
गीत-गजल छंदों का मौसम रोता है
मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोते हैं
ग़ालिब, तुलसी, जिगर, कबीरा रोते हैं

भारत माँ के दिल में छाले पड़ते हैं
लिखते-लिखते कागज काले पड़ते हैं
राम नहीं है नारा, बस विश्वाश है
भौतिकता की नहीं, दिलों की प्यास है
राम नहीं मोहताज किसी के झंडों का
सन्यासी, साधू, संतों या पंडों का

राम नहीं मिलते ईंटों में गारा में
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में
राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को
राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को
राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में
राम मिले हैं पंचवटी की छाँव में

राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में
राम मिलेंगे बजरंगी के सीने में
राम मिले हैं वचनबद्ध वनवासों में
राम मिले हैं केवट के विश्वासों में
राम मिले अनुसुइया की मानवता को
राम मिले सीता जैसी पावनता को

राम मिले ममता की माँ कौशल्या को
राम मिले हैं पत्थर बनी आहिल्या को
राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में
राम मिले शबरी के झूठे बेरों में

मै भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ
मै भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ
मेरी भारत माँ मुझको वरदान है
मेरी पूजा है मेरा अरमान है
मेरा पूरा भारत धर्म-स्थान है
मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है

डॉ. हरिओम पंवार

घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
मैं भी गीत सुना सकता हूँ शबनम के अभिनन्दन के
मै भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत पढूंगा जन-गण-मन के क्रंदन के

जब पंछी के पंखों पर हों पहरे बम के, गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हों सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पार हों दाग लहू की होली के
कैसे कोई गीत सुना दे बिंदिया, कुमकुम, रोली के

मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आँसू गाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

कहाँ बनेगें मंदिर-मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मण्डल और कमण्डल ने पी डाला आँखों का पानी
प्यार सिखाने वाले बस्ते मजहब के स्कूल गये
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गये

कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल चलें
सोन -चिरैया सूली पर है पंछी गाना भूल चले
आँख खुली तो माँ का दामन नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी सौंपी घर भरने में व्यस्त मिला

क्या ये ही सपना देखा था भगतसिंह की फाँसी ने
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

एक नया मजहब जन्मा है पूजाघर बदनाम हुए
दंगे कत्लेआम हुए जितने मजहब के नाम हुए
मोक्ष-कामना झांक रही है सिंहासन के दर्पण में
सन्यासी के चिमटे हैं अब संसद के आलिंगन में

तूफानी बदल छाये हैं नारों के बहकावों के
हमने अपने इष्ट बना डाले हैं चिन्ह चुनावों के
ऐसी आपा धापी जागी सिंहासन को पाने की
मजहब पगडण्डी कर डाली राजमहल में जाने की

जो पूजा के फूल बेच दें खुले आम बाजारों में
मैं ऐसे ठेकेदारों के नाम बताने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

कोई कलमकार के सर पर तलवारें लटकाता है
कोई बन्दे मातरम के गाने पर नाक चढ़ाता है
कोई-कोई ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई गंगा-यमुना अपने घर में भरने लगता है

कोई तिरंगे झण्डे को फाड़े-फूंके आजादी है
कोई गाँधी जी को गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोंप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में
कोई ढाँचे का गिरना यू. एन. ओ. में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है

लेकिन सौ गाली होते ही शिशुपाल कट जाते हैं
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बगुला भगतों की टोली हंसों को खा जाती है
इनको कोई सजा नहीं है दिल्ली के कानूनों में
न जाने कितनी ताकत है हर्षद के नाखूनों में

जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तब माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब-जब भी जयचंदों का अभिनन्दन होने लगता है
तब-तब साँपों के बंधन में चन्दन रोने लगता है

जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते हैं
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं
सिंहों को 'म्याऊं' कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है

कहते हैं यदि सच बोलो तो प्राण गँवाने पड़ते हैं
मैं भी सच्चाई गा-गाकर शीश कटाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

'भय बिन होय न प्रीत गुसांई' - रामायण सिखलाती है
राम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है
जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं
तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं

केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कला की नगरी मुंबई लोहू में सन जाती है

राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं
इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है

पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

डॉ. हरिओम पंवार

घाटी के दिल की धड़कन

घाटी के दिल की धड़कन

घाटी के दिल की धड़कन
काश्मीर जो खुद सूरज के बेटे की रजधानी था
डमरू वाले शिव शंकर की जो घाटी कल्याणी था
काश्मीर जो इस धरती का स्वर्ग बताया जाता था
जिस मिट्टी को दुनिया भर में अर्ध्य चढ़ाया जाता था
काश्मीर जो भारतमाता की आँखों का तारा था
काश्मीर जो लालबहादुर को प्राणों से प्यारा था
काश्मीर वो डूब गया है अंधी-गहरी खाई में
फूलों की खुशबू रोती है मरघट की तन्हाई में

ये अग्नीगंधा मौसम की बेला है
गंधों के घर बंदूकों का मेला है
मैं भारत की जनता का संबोधन हूँ
आँसू के अधिकारों का उदबोधन हूँ
मैं अभिधा की परम्परा का चारण हूँ
आजादी की पीड़ा का उच्चारण हूँ

इसीलिए दरबारों को दर्पण दिखलाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

बस नारों में गाते रहियेगा कश्मीर हमारा है
छू कर तो देखो हिम छोटी के नीचे अंगारा है
दिल्ली अपना चेहरा देखे धूल हटाकर दर्पण की
दरबारों की तस्वीरें भी हैं बेशर्म समर्पण की

काश्मीर है जहाँ तमंचे हैं केसर की क्यारी में
काश्मीर है जहाँ रुदन है बच्चों की किलकारी में
काश्मीर है जहाँ तिरंगे झण्डे फाड़े जाते हैं
सैंतालिस के बंटवारे के घाव उघाड़े जाते हैं
काश्मीर है जहाँ हौसलों के दिल तोड़े जाते हैं
खुदगर्जी में जेलों से हत्यारे छोड़े जाते हैं

अपहरणों की रोज कहानी होती है
धरती मैया पानी-पानी होती है
झेलम की लहरें भी आँसू लगती हैं
गजलों की बहरें भी आँसू लगती हैं

मैं आँखों के पानी को अंगार बनाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

काश्मीर है जहाँ गर्द में चन्दा-सूरज- तारें हैं
झरनों का पानी रक्तिम है झीलों में अंगारे हैं
काश्मीर है जहाँ फिजाएँ घायल दिखती रहती हैं
जहाँ राशिफल घाटी का संगीने लिखती रहती हैं
काश्मीर है जहाँ विदेशी समीकरण गहराते हैं
गैरों के झण्डे भारत की धरती पर लहरातें हैं

काश्मीर है जहाँ देश के दिल की धड़कन रोती है
संविधान की जहाँ तीन सौ सत्तर अड़चन होती है
काश्मीर है जहाँ दरिंदों की मनमानी चलती है
घर-घर में ए. के. छप्पन की राम कहानी चलती है
काश्मीर है जहाँ हमारा राष्ट्रगान शर्मिंदा है
भारत माँ को गाली देकर भी खलनायक जिन्दा है
काश्मीर है जहाँ देश का शीश झुकाया जाता है
मस्जिद में गद्दारों को खाना भिजवाया जाता है

गूंगा-बहरापन ओढ़े सिंहासन है
लूले - लंगड़े संकल्पों का शासन है
फूलों का आँगन लाशों की मंडी है
अनुशासन का पूरा दौर शिखंडी है

मै इस कोढ़ी कायरता की लाश उठाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

हम दो आँसू नहीं गिरा पाते अनहोनी घटना पर
पल दो पल चर्चा होती है बहुत बड़ी दुर्घटना पर
राजमहल को शर्म नहीं है घायल होती थाती पर
भारत मुर्दाबाद लिखा है श्रीनगर की छाती पर
मन करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर
भारत के बेटे निर्वासित हैं अपनी ही धरती पर

वे घाटी से खेल रहे हैं गैरों के बलबूते पर
जिनकी नाक टिकी रहती है पाकिस्तानी जूतों पर
काश्मीर को बँटवारे का धंधा बना रहे हैं वो
जुगनू को बैसाखी देकर चन्दा बना रहे हैं वो
फिर भी खून-सने हाथों को न्योता है दरबारों का
जैसे सूरज की किरणों पर कर्जा हो अँधियारों का

कुर्सी भूखी है नोटों के थैलों की
कुलवंती दासी हो गई रखैलों की
घाटी आँगन हो गई ख़ूनी खेलों की
आज जरुरत है सरदार पटेलों की

मैं घाटी के आँसू का संत्रास मिटाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

जब चौराहों पर हत्यारे महिमा-मंडित होते हों
भारत माँ की मर्यादा के मंदिर खंडित होते हों
जब क्रश भारत के नारे हों गुलमर्गा की गलियों में
शिमला-समझौता जलता हो बंदूकों की नालियों में

अब केवल आवश्यकता है हिम्मत की खुद्दारी की
दिल्ली केवल दो दिन की मोहलत दे दे तैय्यारी की
सेना को आदेश थमा दो घाटी ग़ैर नहीं होगी
जहाँ तिरंगा नहीं मिलेगा उनकी खैर नहीं होगी

जिनको भारत की धरती ना भाती हो
भारत के झंडों से बदबू आती हो
जिन लोगों ने माँ का आँचल फाड़ा हो
दूध भरे सीने में चाकू गाड़ा हो

मैं उनको चौराहों पर फाँसी चढ़वाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
चाँद-सितारे टांक लिये हैं खून लिपि दीवारों ने
इसीलियें नाकाम रही हैं कोशिश सभी उजालों की
क्योंकि ये सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की
अंतिम एक चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को
गीदड़ कायरता ना समझे सिंहो की ख़ामोशी को

हमको अपने खट्टे-मीठे बोल बदलना आता है
हमको अब भी दुनिया का भूगोल बदलना आता है
दुनिया के सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते
भारत की प्रभुसत्ता के वो ठेकेदार नहीं लगते
तीर अगर हम तनी कमानों वाले अपने छोड़ेंगे
जैसे ढाका तोड़ दिया लौहार-कराची तोड़ेंगे

आँख मिलाओ दुनिया के दादाओं से
क्या डरना अमरीका के आकाओं से
अपने भारत के बाजू बलवान करो
पाँच नहीं सौ एटम बम निर्माण करो

मै भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन निकला हूँ ||
by- Dr. Hariom Panwar