सोमवार, जुलाई 05, 2010

रक्तदानी का अंत

सड़क पर भीड़ जमा थी। भीड़ के बीच में खून से लथपथ 20-22 साल का एक नौजवान कराह रहा था। पास ही बिखरे थे कुछ प्रमाण पत्र जिनमें से एक बता रहा था कि वह यूनिवर्सिटी का सिल्वर मेडलिस्ट था। दूसरे पर उसका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा था, जिस पर उसकी सराहना की गई थी कई बार अपना खून देकर कई लोगों की जान बचाने के लिए।
कमीज की जो से आधा बाहर लटक रहा एक लिफाफा भी खून से भीगकर अपना रंग खो चुका था। शायद वह किसी नौकरी के लिए कॉल लैटर था।
रोड के दूसरी ओर मंत्रीजी की रैली थी जिसमें वे युवाओं और देश के लिए कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखने का दम भर रहे थे।
लोगों के चेहरों पर दर्द तो दिख रहा था, लेकिन इतनी हिम्मत नहीं कि वे उसे अस्पताल पहुंचा दें। तभी एक गाड़ी वाले का दिल पसीजा और एक आदमी की मदद से गाड़ी में डालकर वह उसे अस्पताल ले गया।
जांच के बाद डॉक्टरों ने कहा- खून बहुत बह गया है, जान बचानी है तो खून चढ़ाना पड़ेगा।
डॉक्टरों ने ऐबी नेगेटिव ब्लड की 3 यूनिट लाने को कह दिया।
अब भी गाड़ी वाले ने ही भलमनसाहत दिखाई। खुद का लड नेगेटिव नहीं था सो ब्लड बैंक की ओर दौड़ा। चार ब्लड बैंक की खाक छानने के बाद भी निराशा हाथ लगी। पता लगा- हर ब्लड बैंक में नेगेटिव ग्रुप उपलध है, लेकिन शहर में मंत्रीजी आए हैं और उनका ब्लड ग्रुप भी नेगेटिव है, इसलिए हर जगह ये खून इमरजेंसी के लिए रखा गया है।


वो भला मानस कुछ नहीं कर पाया और उसकी आंखों के सामने युवक ने तड़प-तड़प कर जान दे दी।
दोपहर ढली तो सड़क किनारे स्थित श्मशान में एक चिता जल रही थी और पास से ही मंत्रीजी का काफिला धूम-धड़ाके से उसके रक्तदाता-प्रमाणपत्र को रौंदता हुआ गुजर रहा था।

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