मंगलवार, मार्च 15, 2011

बहुत कुछ कहते हैं ये हाथ तुम्हारे

बहुत कुछ कहते हैं ये हाथ तुम्हारे
सूख गए जीवन संध्या में जैसे पतझड़ में दरख्त

तुमने देखा है जिंदगी का हर पड़ाव
पाताल सा उतार, हिमालय सा चढ़ाव
इनमें पड़ी दरारें और उनसे रिसता रक्त
बहुत कुछ कहते हैं ये हाथ तुम्हारे
सूख गए जीवन संध्या में जैसे पतझड़ में दरख्त


इसका रंग बहुत गहरा उस स्याही से
जिससे लिखा इतिहास- कुछ छुपाने को, कुछ बताने को
बिन बोले बयाँ कर रहा ये पूरी हकीक़त
बहुत कुछ कहते हैं ये हाथ तुम्हारे
सूख गए जीवन संध्या में जैसे पतझड़ में दरख्त

मानो कोई गूंगा बोल रहा हो अपनी बोली
पर समझने को चाहिए धीरज सुनने का
और चाहिए सच स्वीकारने की ताक़त
बहुत कुछ कहते हैं ये हाथ तुम्हारे
सूख गए जीवन संध्या में जैसे पतझड़ में दरख

( ट्रेन में रायपुर ( छत्तीसगढ़) से २४ फरवरी, २०११ को दिल्ली जाते समय ग्वालियर से पहले एक बुज़ुर्ग महिला मिली थी। सिर पर अमरूदों से भरी टोकरी, सूखकर कांटा हो चुके हाथ और उनसे रिसता खून। उसके हाथ देखकर ही उसकी पीड़ा ने इन शब्दों का रूप ले लिया। शायद मैं उसकी सूरत और बेबसी कभी ना भूल पाऊं.)

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