शुक्रवार, जुलाई 02, 2010

चौधर की झूठी कहानी...


ऐ ऊंची पगड़ी वालो, ये चौधर की झूठी कहानी है,
मोहब्बत रास्ता बना ही लेगी, ये तो बहता पानी है,

मत बहाओ तुम खून उनका, जिनको अपना कहते हो,
पहले धरते हो कंस-रूप, फिर जिंदगीभर गम सहते हो,
पहले मिलते थे छिप-छिपकर, अब मिलकर छिपते हैं,
टकरा जाएँगे किसी दिन वो तुमसे, ये जोश-ऐ-जवानी है
ऐ ऊंची पगड़ी वालो, ये चौधर की झूठी कहानी है...

अब छोड़ भी दो चौधर-गोत्र, ये घमंड पुराना है,
इज्ज़त की खातिर ना अकबर की तरह अकडो तुम,
अनारकली को चिनवाया तो तब चुप रह गया था,
आज कुछ भी कर गुजरेगा ये सलीम बलिदानी है,
ऐ ऊंची पगड़ी वालो, ये चौधर की झूठी कहानी है...

नाम की खातिर अपनों को दफनाना, बड़ी नादानी है,
बदलो खुद को, तकाजा है दौर का, बदलाव की रवानी है,
चुपचाप सह जाती थी तुम्हारे सारे ज़ुल्म जो अबला नारी,
कल तक थी केवल लक्ष्मी, आज बनी भवानी है,
ऐ ऊंची पगड़ी वालो, ये चौधर की झूठी कहानी है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें