About Me

अब क्या बताएं आपको... जब खुद को खुली किताब ही कह दिया तो और कुछ कहने को बचा ही नहीं है... लोग जिसे पत्रकारिता कहते हैं वही शौक पाला हुआ है हमने भी. दैनिक भास्कर से शुरुआत की थी, थोड़े षड्यंत्र सीखे तो भास्कर के धुर विरोधी दैनिक जागरण ने बुला लिया... वो शुभारम्भ था षड्यंत्र की दुनिया में करतब दिखाने का... कच्चे खिलाड़ी थे, सो जगह बनाने में थोडा टाइम लग गया...
कुछ और जालसाजी सीखी तो भास्कर वालों को रास आ गई... एक साल पानीपत भास्कर में सेवाएँ दी...
उड़ान का एक और मौका मिला पंजाब केसरी में...
वहां से काफी कुछ सीखा...
अब उम्मीद है की जल्द बड़ा षड्यंत्रकारी बन जाऊंगा..
तब एक और तमगा मिल जाएगा...

और हाँ... थोडा बहुत लिख भी लेता हूँ... जो गाहे-बगाहे किसी न किसी अखबार या पत्रिकाओं में छपता ही रहता है... थोड़े दिन तक "हिन्दुस्तान" मेरठ में मोर्चा संभाल रखा था. ये षड्यंत्र की धरती रही है... ऐसे ही कई षड्यंत्रकारी यहाँ मिले....  जब ये सब अपने से ज्यादा अखबार पर भारी पड़ने लगा तो... हमें भी लगा- अब चलना चाहिए. ....... बस एक दिन निकल लिए... फिर अनजान राहों पर... लेकिन पिछले षड्यंत्र काम आये... और एक मित्र ने तारीफों के इतने पुल बांधे और कागज पर अच्छे शब्दों में की गई तारीफ़ एक और संस्थान को पसंद आ गई... फिलहाल "पत्रिका" रायपुर में मोर्चा संभाल रखा है...
             

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